IPO FPO OFS And Right Issue Difference In Hindi

IPO FPO OFS And Right Issue Difference In Hindi

ipo fpo ofs and right issue difference in hindi

हेल्लो दोस्तों आज हम इस टोपिक में उन चारों प्लेटफार्म की तुलना करेंगे जिनसे कंपनी की पूंजीकरण एकत्रित करने की प्रोब्लम का समाधान होता हैं तो हम इस टोपिक पर यह समजने वाले है की कंपनीयां आखिरकार किन – किन प्लेटफार्म के जरिये स्टॉक मार्केट में अपनीं फंड्स की आवश्यकताओं को पूरा करतीं हैं और उन चारों प्लेटफार्म के बिच क्या – क्या Difference है उन सभी बातोँ को हम पूर्ण विस्तार से समजेंगे तो चलिए शुरू करते हैं (ipo fpo ofs and right issue difference in hindi)

IPO, FPO, OFS and Right Issue की जानकारी

वैसे इन चारों टोपिक पर उनकें पर्टिकुलर आर्टिकलों को मैने पहलेसे ही पब्लिश किए हुए हैं, इस टोपिक को शुरू करने से पहले एक बात को अवश्य ध्यान में रखे की ‘Initial Public Offering’ (IPO), ‘Follow on Public Offer’ (FPO), ‘Offer For sale’ (OFS) और ‘Right Issue’ इन सभी को हम केवल कंपनी की फंड एकत्रित करने की विधि को ध्यान में रखते हुए ही समझेंगे तो चलिए सबसे पहले हम आईपीओ के बारेंमे समजते हैं

Initial Public Offering का फंड एकत्रित करने में उपयोग :-

जब कोई कंपनी पहलीबार अपनें स्टॉक को स्टॉक मार्केट में लिस्टिंग (सूचीबद्ध) करवाती हैं जिसमें वह कंपनी अपनीं फंड्स की आवश्यकता को पूरा करने के लिए अपनें शेयरों को सार्वजनिक प्रस्ताव के जरिये पब्लिक को ऑफर करती हैं उसे IPO यानि ‘इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग’ कहा जाता हैं

वैसे कंपनी का स्टॉक मार्केट में फंड जुटाने का यह पहला चरण होता है जिसकें जरिये वह अपनी कैपिटल की जरूरतों को पूर्ण कर सकता हैं आमतौर पर कंपनी को कई कारणों से फंड्स को एकत्रित करना पड़ सकता हैं

जैसे की; कंपनी का विस्तार बढ़ना, जिनके साथ – साथ उनकें खर्च भी बढ़ते है और साथ ही विस्तार बढ़ने से उनकें नए प्रोडक्ट और सेवाओं को जारी करने के लिए इन जैसे और कई कारणों की वजह से कंपनी को नए फंड्स की आवश्यकता उपस्थित होती हैं जिसकें लिए स्टॉक मार्केट एक उचित ऑप्शन हो सकता हैं जिसमें आईपीओ उनका पहला स्टेप होता हैं

अब आईपीओ जारी करने के लिए कंपनी को कई प्रकार की प्रोसेस करवानी पड़ती हैं जिसमे SEBI की परमीशन नंबर वन पर हैं वैसे इनसे पहले भी उनको काफी तैयारी करनी पड़ती हैं

साथ ही कंपनी आईपीओ जारी करतें समय एक परमीशन लेटर जारी करती हैं जिसे Draft Red Herring Prospectus (DRHP) कहा जाता हैं इसमें कंपनी की सभी प्रकार की जानकारिया शामिल होती है और साथ ही इस डोक्युमेंट में कंपनी यह भी सुनिश्चित करती हैं की आईपीओ के जरिये एकत्रित किये गए फंड्स को वह कंपनी में किस प्रकार इस्तेमाल करेंगी तो यह एक मोस्ट नोटेड पॉइंट हैं

इन चारों को आपस में कम्पेयर करके देखते हैं और समजते है की किन – किन पॉइंट्स पर कोनसा पब्लिक ऑफर अलग निकलता हैं

IPO की तुलना FPO, OFS और Right Issue के साथ

पहले आईपीओ की बात करें तो यह उन तीनो से अलग है इसके सभी वैलिड पॉइंट को वन बाय वन समजते हैं –

  • पहले तो आईपीओ नंबर वन पर है जिनसे ही पब्लिक ऑफर की शुरुआत होती हैं
  • आईपीओ नई कंपनी के द्वारा लाए जाने से यह जोखिम भरा निवेश भी हो सकता है क्योंकि यह कंपनी स्टॉक मार्केट में पहलीबार लिस्टेड होने जा रही है जिसकी केवल एनुअल रिपोर्ट और पुराने कार्यक्रम के आधार पर समजना होता है की यह कंपनी मार्केट में कैसा प्रदर्शन करेंगी
  • आईपीओ एक सार्वजनिक प्रस्ताव होता है जिसमे ऑलमोस्ट सभी प्रकार के निवेशक इन्वेस्टमेंट कर सकते हैं
  • इन सभी पब्लिक ऑफ़र में आईपीओ की लोकप्रियता सबसे ज्यादा देखने को मिलती हैं
  • आईपीओ में निवेश करना जितना जोखमी है उनसें कई ज्यादा प्रॉफिट कमाने की क्षमता होती हैं

Follow on Public Offer का फंड एकत्रित करने में उपयोग :-

यह प्रक्रिया भी कंपनी को बाज़ार से अतिरिक्त फंड्स को एकत्रित करनेमे मदद करती हैं, जब कोई कंपनी आईपीओ के जरिये Stock Exchange में पहलेसे लिस्टेड हो उसकेबाद यदि उस कंपनी को भविष्य में फंड्स की आवश्यकता पड़ती हैं तो वह कंपनी नये शेयर्स या पहलेसे मोजूद शेयरों को जारी करकें अपनी फंड्स की आवश्यकता को पूर्ण करेंगी इस प्रोसेस को FPO यानि ‘फॉलो ऑन पब्लिक ऑफर’ कहा जाता हैं

वैसे मार्केट से कैपिटल को एकत्रित करने का यह प्रोसेस कंपनी का दूसरा चरण माना जाता हैं साथ ही एफपीओ को दूसरा पब्लिक ऑफर भी कहा जाता हैं, इसमें भी कंपनी को कई कारणों से फंड्स एकत्रित करना पड़ सकता हैं जिसमें आईपीओ जारी करते समय जिन कारणों को शामिल किया गया था वह भी हो सकते है और दूसरें कारणों में कंपनी को अपने कर्ज को कम करने के लिए भी एफपीओ जारी करना पड़ सकता हैं

एफपीओ जारी करने के मुख दो प्रकार होते हैं एक तो Dilutive FPO और दूसरा Non-dilutive FPO वैसे इन दोनों प्रकारों के बारेंमे इनके आर्टिकल में हम विस्तार से चर्चा की थी तो इस मुद्दें को मे फिरसे रीपीट नहीं करूँगा

FPO की तुलना IPO, OFS और Right Issue के साथ

अब बात करते है एफपीओ की जिनके साथ बाकीके उन तीनो पब्लिक ऑफर से कैसे अलग हैं –

  • पहले तो एफपीओ कंपनी तभी जारी करेंगी जब वह पहले से स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड हो यानि आईपीओ के बाद यह दूसरा पब्लिक ऑफर कहा जाता हैं
  • आमतौर पर इनमें निवेश करने का इतना जोखिम नहीं होता है क्योंकि एफपीओ जारी करने वाली कंपनी की मार्केट बेस पर सभी जानकारी हमारे पास पहले से ही होती है जैसे की; हमें उस स्टॉक की मूवमेंट, उनका रोजाना कारोबार का वॉल्यूम, सेबी के द्वारा दी गई केटेगरी जेसे (ASM and GSM Category, Group – A,B,T,Z Ext…) और उस स्टॉक में ट्रेडिंग करने का अनुभव आदि जैसी बातोँ को ध्यान में रखके एफपीओ में निवेश कर सकते हैं
  • एफपीओ में ज्यादातर पुराने (प्रमोटर शेयरहोल्डिंग) शेयरों को ही पब्लिक के लिए जारी किए जाते हैं
  • आईपीओ की तरह यह भी पब्लिक ऑफर है जिसमे ऑलमोस्ट सभी प्रकार के निवेशक इन्वेस्ट कर सकते हैं
  • एफपीओ में CMP से कम की प्राइस को दिया जाता हैं जिनसे निवेशकों को इनमें निवेश करने की रुचि उत्पन्न हों

Offer For Sale का फंड एकत्रित करने में उपयोग :-  

वैसे ओएफएस की यह प्रक्रिया भी अतिरिक्त फंड्स को एकत्रित करने के लिए ही की जाती हैं मगर इसमें आईपीओ या एफपीओ में शामिल कारणों की वजह से कैपिटल को बढ़ाने की जरुरत नहीं पड़ती हैं क्योंकि ओएफएस का इस्तेमाल ज्यादातर कंपनी की शेयरहोल्डिंग को कम करने के लिए किया जाता हैं

साथ ही इसकी प्रक्रिया आईपीओ और एफपीओ से काफी सरल और डॉक्युमेंटरी प्रोसेस के बिना की जाती हैं इसका एक कारन यह भी है की ओएफएस के जरिये प्राप्त हुए फंड्स पर कंपनी के प्रमोटर्स का हक़ होता हैं क्योंकि इसमें ज्यादातर प्रमोटर की हिस्सेदारी (शेयरहोल्डिंग) को कम किया जाता हैं, इस पब्लिक ऑफर को OFS यानि ‘ऑफर फॉर सेल’ कहा जाता हैं

OFS की तुलना IPO, FPO और Right Issue के साथ

तो अब बात करते है ओएफएस के बारेंमे जिसकी मदद से हम बाकीके तीनो पब्लिक इश्यु की इनसे तुलना करेंगे –

  • ओएफएस जारी करने का कारन आईपीओ और एफपीओ से कई ज्यादा अलग है क्योंकि यह दो प्रकार के इश्यु ज्यादातर कंपनी की कैपिटल (फंड) को बढ़ाने के लिए किए जाते है मगर ओएफएस का इश्यु कंपनी तब जारी करती है जब उनकीं शेयर होल्डिंग काफी ज्यादा हो जाती है और उन्हीं को मैनेज करने के लिए कंपनी ओएफएस का चयन करती हैं
  • इनमें एकत्रित किए गए फंड्स पर केवल कंपनी के प्रमोटर्स का अधिकार होता है जबकि बाकीके उन तीनो पब्लिक इश्यु के द्वारा एकत्रित किया गया फंड्स सीधा कंपनी के फंड में जमा होता हैं
  • ओएफएस में जारी किये गए शेयर्स ज्यादातर पुराने होते है नये शेयर्स को इनमे जारी नहीं किया जाता हैं
  • आईपीओ और एफपीओ की ही तरह इनमे भी सभी प्रकार के निवेशक निवेश कर सकते हैं

Right Issue का फंड एकत्रित करने में उपयोग :- 

‘राईट इश्यु’ के जरिये भी कंपनी अपनें लिए नए फंड्स की रचना करती हैं मगर यह प्रक्रिया उन तीनो से बिल्कुल अलग होती हैं अब यह कैसे अलग है इसे स्टेप बाय स्टेप समजते हैं पहले तो हम इसके नाम के सेन्स को समजते हैं

‘राईट इश्यु’ जिसका यह मतलब होता है की इसे सार्वजनिक प्रस्ताव नहीं कहा जा सकता है क्योंकि यह ऑफर सीमीत पब्लिक के लिए ही होती हैं और वो पब्लिक केवल उस कंपनी के स्टॉक की शेयरहोल्डर होती हैं

इसका यह मतलब होता है की ‘राईट इश्यु’ के जरिये कंपनी तभी फंड्स एकत्रित करती है जब उसे कम कैपिटल की आवश्यकता हो और उन्हें विश्वास हो की उनकीं फंडिंग उनकें ही शेयर – धारकों से प्राप्त हो जाएँगी जिसके लिए वो नये शेयरों का निर्माण करके उन्हें CMP से कम कीमत पर अपने शेयरहोल्डरों को जारी करने का प्रस्ताव रखती हैं जिसे Right Issue के नाम से जाना जाता हैं

Right Issue की तुलना IPO, FPO और OFS के साथ

तो आखिर में राईट इश्यु को उन तीनो पब्लिक और सार्वजनिक ऑफ़र के साथ तुलना करते हैं –

  • राईट इश्यु में केवल वही निवेशक निवेश कर सकता है जिनके पास उस कंपनी के शेयर्स पहलेसे पड़े हो यानि वह निवेशक उस कंपनी का पहलेसे शेयर – धारक होना जरुरी हैं
  • आमतौर पर कंपनी कैपिटल एकत्रित करने के लिए ही राईट इश्यु को जारी करती हैं मगर इसमें आईपीओ और एफपीओ की तुलना में काफी कम फंड्स की आवश्यकता होती है जिसके लिए कंपनी पहली अहमियत अपने शेयर – धारकों को प्रदान करती हैं
  • राईट इश्यु को सार्वजनिक प्रस्ताव नहीं कहा जा सकता है क्योंकि यह केवल अपने शेयरहोल्डरों के लिए ही उपलब्ध किये जाते हैं

निष्कर्ष :-

तो दोस्तों आपको हमारी यह चारों पब्लिक ऑफर की तुलना का टोपिक कैसा लगा हमें कमेंट में जरुर कहे, हमनें इस टोपिक (ipo fpo ofs and right issue difference in hindi) में क्या – क्या सिखा उनपर एक नज़र डालते है और इसे संक्षिप्त में समजते हैं

भारतीय शेयर बाज़ार बेहद विशाल है जिसमें हमें निवेश करने के अनगिनत प्लेटफार्म मिल जाएँगे इन्ही में चार इन्वेस्टमेंट प्लेटफार्म स्टॉक मार्केट में बेहद लोकप्रिय है और आमतौर पर चारों प्लेटफार्म केवल निवेशकों के लिए ही नहीं बल्कि जो कंपनीयां स्टॉक मार्केट में लिस्टेड है और जो लिस्टेड नहीं है उनकें लिए भी यह बेहद ही महत्वपूर्ण प्लेटफार्म है जिसकी मदद से वह कंपनीयां खुदको विकसित करने में ज्यादा सक्षम बन पाती हैं तो फिलहाल यह टोपिक यही समाप्त होता हैं फिर मिलेंगे ऐसी ही आर्टिकल के साथ तबतक आप सभी का धन्यवाद

IPO की तुलना FPO, OFS और Right Issue के साथ

पहले तो आईपीओ नंबर वन पर है जिनसे ही पब्लिक ऑफर की शुरुआत होती हैं

आईपीओ नई कंपनी के द्वारा लाए जाने से यह जोखिम भरा निवेश भी हो सकता है क्योंकि यह कंपनी स्टॉक मार्केट में पहलीबार लिस्टेड होने जा रही है जिसकी केवल एनुअल रिपोर्ट और पुराने कार्यक्रम के आधार पर समजना होता है की यह कंपनी मार्केट में कैसा प्रदर्शन करेंगी

FPO की तुलना IPO, OFS और Right Issue के साथ

पहले तो एफपीओ कंपनी तभी जारी करेंगी जब वह पहले से स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड हो यानि आईपीओ के बाद यह दूसरा पब्लिक ऑफर कहा जाता हैं

आमतौर पर इनमें निवेश करने का इतना जोखिम नहीं होता है क्योंकि एफपीओ जारी करने वाली कंपनी की मार्केट बेस पर सभी जानकारी हमारे पास पहले से ही होती है जैसे की; हमें उस स्टॉक की मूवमेंट, उनका रोजाना कारोबार का वॉल्यूम, सेबी के द्वारा दी गई केटेगरी जेसे (ASM and GSM Category, Group – A,B,T,Z Ext…) और उस स्टॉक में ट्रेडिंग करने का अनुभव आदि जैसी बातोँ को ध्यान में रखके एफपीओ में निवेश कर सकते हैं

OFS की तुलना IPO, FPO और Right Issue के साथ

एफपीओ जारी करने का कारन आईपीओ और एफपीओ से कई ज्यादा अलग है क्योंकि यह दो प्रकार के इश्यु ज्यादातर कंपनी की कैपिटल (फंड) को बढ़ाने के लिए किए जाते है मगर एफपीओ का इश्यु कंपनी तब जारी करती है जब उनकीं शेयर होल्डिंग काफी ज्यादा हो जाती है और उन्हीं को मैनेज करने के लिए कंपनी एफपीओ का चयन करती हैं

Right Issue की तुलना IPO, FPO और OFS के साथ

राईट इश्यु में केवल वही निवेशक निवेश कर सकता है जिनके पास उस कंपनी के शेयर्स पहलेसे पड़े हो यानि वह निवेशक उस कंपनी का पहलेसे शेयर – धारक होना जरुरी हैं

राईट इश्यु को सार्वजनिक प्रस्ताव नहीं कहा जा सकता है क्योंकि यह केवल अपने शेयरहोल्डरों के लिए ही उपलब्ध किये जाते हैं

     

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