Short Selling In Hindi
शॉर्ट सेलिंग एक ट्रेडिंग रणनीति है जो निवेशकों को सुरक्षा की कीमत में गिरावट से लाभ की अनुमति देती है इसमें एक ब्रोकर से शेयर उधार लेना, उन्हें बाजार में बेचना, और फिर ब्रोकर को वापस करने के लिए कम कीमत पर खरीदना, अंतर को लाभ के रूप में पॉकेट करना शामिल है
जबकि शॉर्ट सेलिंग एक जोखिम भरी रणनीति हो सकती है तो सामने यह उन निवेशकों के लिए एक उपयोगी उपकरण भी हो सकता है जो संभावित नुकसान के खिलाफ बचाव करना चाहते हैं या ओवरवैल्यूड सिक्योरिटीज का लाभ उठाना चाहते हैं इस लेख (short selling in hindi) में, हम शॉर्ट सेलिंग की मूल बातें, इसके संभावित लाभों और जोखिमों का पता लगाएंगे और व्यापक निवेश रणनीति के हिस्से के रूप में इसका उपयोग कैसे किया जा सकता है यह समझेंगे
‘शोर्ट सेलिंग‘ यह क्या हैं और इसका स्टॉक मार्केट में क्या महत्त्व हैं इनसे जुड़ें और कई प्रकार के सवाल आपके मनमे चल रहे होंगे तो मैं आपको बतादू की हम इस टोपिक (short selling in hindi) में इसी मुद्दें पर डिस्कसन करनेवाले हैं साथ ही इसके उदाहरण के माध्यम से भी समजेंगे और साथ ही इसकी शक्तियां और खामियों के बारेंमे भी जानेंगे तो चलिए शुरू करते हैं
Short Selling क्या होती हैं :-
‘शोर्ट सेलिंग’ की व्याख्या को देख लेते है, “शोर्ट सेलिंग यानि ऐसे शेयर्स को बेचना जो हमारे पास पहले से मोजूद नहीं है” चलिये इसे विस्तार से समजते है, SEBI के मुताबिक ‘शोर्ट सेलिंग’ करना इनके नियमों के विपरीत है एक तरह से यह सही भी है हमारे पास जो चीज है ही नहीं उसे बेचने का हमारा कोई अधिकार नहीं बनता है
‘शोर्ट सेलिंग’ में भी बिल्कुल इसी तरह है इसमें भी हम उन शेयरों पर बिकवाली करते है जो स्टॉक्स हमारे Demat Account में पहले से जमा नहीं हैं इस प्रकार के ट्रेडिंग स्ट्रेटेजि को ‘शोर्ट सेलिंग’ कहा जाता हैं
शोर्ट सेलिंग का सामान्य अर्थ
‘शोर्ट सेलिंग’ को गुजराती भाषा में शेयर को माथे मारना बोलते हैं, आमतौर पर स्टॉक मार्केट की हमारी स्ट्रेटेजि के मुताबिक हम पहले शेयरों को कम कीमतों पर खरीदते है और जब उसकी कीमतों में उछाल आता है तब हम उसे उचे दामो में बेचते है मगर यह स्ट्रेटेजि ज्यादातर तेजी वाले मार्केट में ही फायदेमंद साबित होती है
जबकि बाजार के मंदी वाले दौर में (जब शेयरों में गिरावट देखने को मिलती है तब) यह व्यूहरचना किसी काम नहीं आती है, इसके लिए हम इस टोपिक के माध्यम से समजेंगे की आखिरकार ‘शोर्ट सेलिंग’ क्या होती है और इसे हम हमारें रोजाना ट्रेडिंग में कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं
शोर्ट सेलिंग किसे नहीं कह सकतें
एक बात खास ध्यान में रखे की यदि हमारे पास Tata Steel के कुछ शेयर होते और हम उसे Current Market Price (CMP) में डिलीवरी बेस पर उसे बेचते और यदि Tata Steel के स्टॉक में अच्छीखासी गिरावट आती है और हम उसे वापिस खरीद कर पोजीशन स्क्वेरअप (इंट्राडे) करते है तो इस ट्रेडिंग स्ट्रेटेजि को ‘शोर्ट सेलिंग’ का नाम बिल्कुल नहीं दिया जायेंगा क्योंकि बेचे गए शेयर्स हमारे खुदके थे जिस वजह से इस ट्रेडिंग को शोर्ट सेलिंग का नाम नहीं दिया जा सकता हैं
शोर्ट सेलिंग करतें समय इन बातोँ को ध्यान में रखें
- इस प्रकार के Sold Stock को Market Closing से पहले Buy (खरीदारी) करना जरूरी है अन्यथा इसके पेनल्टी स्वरूप दंड भरना पड़ सकता है तो शोर्ट सेलिंग करते समय आपको इस बात का अवश्य ध्यान रखना हैं
- साथ ही हमें एक और खास बात ध्यान में रखनी है की हमने जिस कंपनी के स्टॉक पर शोर्ट सेलिंग की है उस स्टॉक पर Upper Circuit ना लगे यदि उस शेयर को खरीदने से पहले उस स्टॉक पर उपर की सर्किट लग जाती है इसका यह मतलब है की अब उस स्टॉक पर कोई बिकवाल नहीं है और जब उस को कोई बेचेंगा ही नहीं तो हम उन शेयरों को वापिस खरीदेंगे कैसे ? तो इसका भी एक समाधान है Stop – Loss ट्रेडिंग स्ट्रेटेजि जिसकें जरिये आप बेचे हुए शेयर की खरीदी की लिमिट Upper Circuit तक यानि Selling Price से ऊपर की रख सकतें हैं
- इसमें हम सामान्य ट्रेडिंग से बिल्कुल विपरीत ट्रेडिंग करते है यानि इसमें शेयर को पहले बेचा जाता है यानि स्टॉक को सेल किया जाता है, एक बात को हमेशा याद रखे की ‘शोर्ट सेलिंग’ केवल इंट्राडे ट्रेडिंग पर ही किया जाता है और T – Group के शेयरों में इंट्राडे ट्रेडिंग नहीं की जा सकती है
स्टॉक मार्केट के शोर्ट सेलिंग जैसे और ट्रेडिंग प्लेटफार्म
वैसे तो स्टॉक मार्केट में इन्वेस्टमेंट करने के और कई सारे ऑप्शन्स मोजूद है जिनमें से Mutual Funds, SIP, फ्यूचर ट्रेडिंग एंड ऑप्शन ट्रेडिंग (F&O), BSE/NSE Cash Market, Currency Market और Commodity Market आदि जैसे इन्वेस्टमेंट प्लेटफार्म शामिल है
साथ ही इनमे लॉन्ग – टर्म इन्वेस्टमेंट में लम्बी अवधि के लिए डिलीवरी बेस ट्रेडिंग की जाती है और शोर्ट – टर्म इन्वेस्टमेंट में छोटी अवधि के लिए निवेश किया जाता है
Short Selling की ट्रेडिंग स्ट्रेटेजि :-
तो आमतौर पर हम पहले किसी भी कंपनी के शेयरों को खरीदते है जिसमे दोनों ही स्थितियों में कारोबार किया जा सकता है यानि उन ख़रीदे गए शेयरों पर Intraday Trading कर सकते है या अपने लॉन्ग – टर्म इन्वेस्टमेंट के स्वरूप भविष्य में फिर कभी भी बेच सकते है यानि Delivery Trding कर सकते हैं मगर ‘शोर्ट सेलिंग’ के कैश में थोडा उल्टा है
पहले तो यह एक प्रकार की ट्रेडिंग स्ट्रेटेजि है जो ज्यादातर गिरावट (मंदी) वाले बाजार में ज्यादा लाभदायक है, इस प्रकार की ट्रेडिंग (कारोबार) आमतौर पर दो ट्रेडिंग प्लेटफार्म पर की जाती है एक तो BSE/NSE Cash Market में सामान्य शेयरों में ट्रेडिंग करना और दूसरा F&O (Future and Option) ट्रेडिंग करना
Future and Option में Short Selling
पहले F&O की बात करे तो F&O ट्रेडिंग का सेटलमेंट महीने के आखरी गुरुवार को होते है जिसके कारन F&O में शोर्ट सेलिंग करना सामान्य बात है मगर हमारा यह टोपिक सामान्य शेयरों पर होने वाले ‘शोर्ट सेलिंग’ के बेस पर किया गया है, तो चलिए उसे समजते है
BSE and NSE Cash Market में Short Selling
शेयर बाजार में Sensex और Nifty आये दिन नए – नए हाई पर कारोबार कर रही है और साथ ही सेंसेक्स तो 60,000 के इतने भव्य अंको पर कारोबार कर रहा है एक यह भी कारन है जिनसे बाजार में ज्यादा मूवमेंट वाली स्थितियों की रचना होती है जिनसे शेयरों में कारोबार बढ़ने के साथ – साथ उनमे उछाल या गिरावट जैसी स्थितियों का निर्माण होता है
इस प्रकार के दो तरफी मूवमेंट वाले बाजार में ज्यादातर इंट्राडे करने वाले ट्रेडर्स को ज्यादा लाभ होता है, इस प्रकार के ट्रेडिंग स्ट्रेटेजि में ट्रेड करने वाले ट्रेडर्स मार्केट की दोनों ही स्थितियों में फिर चाहे वो तेजी हो या मंदी हो दोनों में ट्रेडिंग करके मुनाफा कमाते है
अगर बाजार तेजी में मूवमेंट कर रहा है तो शेयरों को कम कीमतों में खरीद कर ज्यादा कीमतों में उसे बेचते है जिनसे जो बिचका डिफरेंस आता है उसमे ब्रोकरेज चार्ज और कुछ और चार्जिस बाद करके बाकिका उसका प्योर प्रॉफिट होता है
यदि बाजार मंदी की ओर मूव होता दीखता है तो सिम्पल उसका उल्टा करना है यानि शेयरों को उपर की कीमतों में बेच कर कम कीमतों में उसे खरीद लेते है इनसे भी अच्छाखासा मुनाफा बना सकते हैं, अब जबकि हमने ‘शोर्ट सेलिंग’ के बारेंमे सभी सामान्य बातो को समज लिया है, तो अब हम इसको एक उदाहरण के माध्यम से बेहतर समजते हैं
Short Selling के अलग – अलग उदहारण :-
शोर्ट सेलिंग को एक उदाहरण से समजते है, वैसे काफी ट्रेडर्स ऐसे भी है जो ज्यादातर IPO लिस्टिंग वाले शेयरों में इंट्राडे करना पसंद करते है क्योंकि उन स्टॉक्स में ज्यादा मूवमेंट देखने को मिलती है
इंट्राडे ट्रेडिंग के शेयरों में ज्यादा अफरा – तफ़री वाली मूवमेंट ही तो होनी चाहिए उन्ही मूवमेंट के जरिये ही तो हम प्रॉफिट बना पाते है, मगर इस उदाहरण में मे किसी आईपीओ वाले शेयर को नहीं बल्कि पुरानी फेमस कंपनी Tata Steel को लेकर आगे बढ़ेंगे
तो Tata Steel के स्टॉक में आज – कल काफी मूवमेंट देखने को मिल रही है, मगर हमारे पास (Demat Account) Tata Steel के कोई शेयर नहीं है
शोर्ट सेलिंग का सामान्य उदाहरण
अब हमें मार्केट की पोजीशन को देखकर ऐसा प्रतीत होता है की Tata Steel के शेयर में कुछ प्रतिशत तक गिरावट देखने को मिलेंगी जिसके आधार पर हम Tata Steel के स्टॉक में शोर्ट सेलिंग करने का फैसला करते है
इसके लिए हम Tata Steel के 100 शेयरों को Rs.1325 के भाव पर बेचते है मगर Unfortunately इस दिन Tata Steel Company के Quarterly Results की घोषणा होने वाली है
मगर Tata Steel Company के खराब Result के कारन Tata Steel के स्टॉक में गिरावट के कारन उसकी कीमतें Rs.1300 तक आगई मैंने इसका फायदा उठाया और तुरंत उसी कीमत पर Tata Steel के 100 शेयरों को खरीद लिया और अपने सौदे को सुलटा लिया जिस ट्रेड पर मुझे नेट Rs.25 का प्रॉफिट हुआ
शोर्ट सेलिंग का सर्किट वाला उदाहरण
अब यदि ऐसा नहीं हुआ और इसका विपरीत होता है तब क्या होंगा उसे देखते है, तो Tata Steel के Stock में 20% तक की सर्किट होती है यानि Tata Steel के स्टॉक में उस दिन की Rs.1170 पर लोवर सर्किट और Rs.1430 पर अपर सर्किट लगती है मगर इन सर्किटों को लगना बेहद मुश्किल है
मगर एक पल के लिए मानलेते है अगर Tata Steel के स्टॉक में Rs.1430 पर अपर सर्किट लगती है जिनसे केवल शेयरों को Sell ही किया जा सकता है यानि Tata Steel के स्टॉक में केवल Buyers ही दिखाय देंगे, उन्ही कीमतों में शेयरों की सौदेबाजी (कारोबार) होंगा
मगर हमने तो Tata Steel के स्टॉक में ‘शोर्ट सेलिंग’ की हुई है मगर हाल की पोजीशन के मुताबिक तो Tata Steel के स्टॉक में Rs.1430 पर अपर सर्किट लगी हुई है जिसके कारन अब तो हम Tata Steel के शेयरों को खरीदने के लिए असमर्थ है
जिस भूल के कारन स्टॉक एक्सचेंज जो भी पेनल्टी चार्ज करेंगी उसे हमें भरना पड़ेंगा मगर वह पेनल्टी तुरंत नहीं चार्ज की जाएँगी इसकी भी एक प्रोसेस होती है
शोर्ट सेलिंग में शेयर शोर्टेज का उदाहरण
हमने जिस दिन Tata Steel के स्टॉक में शोर्ट सेलिंग की उस दिन को T – Day (Trade Day) कहा जायेंगा, उस दिन का हमारा Contract Note (Bill) तो जमा ही बनेंगा क्युकी Tata Steel के शेयरों की बिकवाली की गई है
स्टॉक एक्सचेंज को तब पता चलता है जब T – Day का Settlement T+2 Day यानि Trade Day के दुसरे दिन होता है, तब दोनों प्रक्रियाओं को साथ में किया जाता है यानि एक तो शोर्ट सेलिंग को स्क्वेरअप ना करने का पेनल्टी चार्ज का बिल बनाना और दूसरा ‘शेयर शोर्टेज’ का बिल बनाना इसे थोडा और विस्तार से समजते है
‘शेयर शोर्टेज’ तब होता है जब शोर्ट सेलिंग के द्वारा बेचे गए शेयरों को किसीने ख़रीदा होंगा मगर बेचनेवाले के पास ही वह शेयर नहीं होंगे तो वो खरीदार को क्या देंगा इस वजह से उस स्टॉक के खरीदार को खरीदी के सेटलमेंट के दिन यानि T+2 Day पर उसके Trading Account में ‘शेयर शोर्टेज’ का बिल जमा मिलता है और वो भी उनके खरीद कीमतों से ज्यादा कीमतों पर बिना शेयर के इन्क्रीमेंट के प्रॉफिट मिल जाता है
इसीके विपरीत उस स्टॉक पर शोर्ट सेलिंग करने वाले Seller को गलती के स्वरूप पेनल्टी चार्ज चुकाना पड़ता है, तो अब आपको ‘शोर्ट सेलिंग’ के बारेंमे विस्तृत जानकारियाँ मिल चुकी होंगी, अब इनके कुछ फायदे और नुकसान के बारेंमे चर्चा करते हैं
Short Selling के फायदे :-
- शोर्ट सेलिंग मार्केट में लिक्विडिटी प्रदान करता है
- यह अधिकतम स्टॉक्स में वैल्यूएशन सुधार में मदद करता है
- इसकी मदद से ट्रेडर्स Bear Market (मंदी बाजार) में भी प्रॉफिट कमा सकते है
- इनसे शेयरों के मार्जिन पर पोजीशन ली जा सकती है
- इसमें सिक्योरिटीज को अच्छी कीमतों पर बेचा जा सकता है जिनसे अधिक लाभ प्राप्त होता है, वितीय विशेषज्ञो ने अक्सर पहले बिक्री करने पर लाभों के बारेंमे तर्क दिया है, संकट के बावजूद दुनियाभर में बाजार नियामकों ने इसके चलन को मंजूरी दी है क्योंकि यह किसी भी स्टॉक के तर्कहीन अधिक मूल्य निर्धारण को सही करने में मदद करता है, खराब शेयरों की बिना वजह की वृद्धि को रोकता है और यह सुनिश्चित करता है की प्रोमोटर शेयर्स की कीमतों में हेराफेरी न करे
Short Selling के नुकसान :-
- इनसे निवेशकों को भारी नुकसानी हो सकती है, यदि सिक्योरिटीज की कीमतों में बढ़ोतरी होती है तब ट्रेडर्स को भारी नुकसानी का सामना करना पद सकता है
- यह शेयरों के कीमतों की अस्थिरता को बढ़ता है
- यह कंपनी के शेयर प्राइस को प्रभावित करता है
- शोर्ट सेलिंग पुरे मार्केट की अस्थिरता का कारण बनता है
- इसकी ट्रेडिंग स्ट्रेटेजि का इस्तेमाल फ्रोड ट्रेडिंग की तकनीको और धोखाधडी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, बाजार के बड़े खिलाड़ी अक्सर शेयरों की कीमतों को कम करने के लिए शोर्ट सेलिंग विधि के अवैध उपयोग का सहारा लेते है इसके कारण बाजार की अस्थिरता बढ़ जाती है और उनमे निवेश करने वाले निवेशकों का जोखिम बढ़ जाता है
निष्कर्ष :-
अंत में, शॉर्ट सेलिंग एक जटिल निवेश रणनीति है जो ट्रेडर्स को स्टॉक की कीमतों में गिरावट से लाभ की अनुमति देती है जबकि यह अनुभवी निवेशकों के हाथों में एक आकर्षक उपकरण हो सकता है, यह भी महत्वपूर्ण जोखिमों के साथ आता है और व्यापार करने से पहले सावधानीपूर्वक शोध और विश्लेषण की आवश्यकता होती है
यह नोट करना भी महत्वपूर्ण है कि शॉर्ट सेलिंग का शेयर बाजार और अर्थव्यवस्था के लिए व्यापक प्रभाव भी हो सकता है, क्योंकि यह बाजार की अस्थिरता में योगदान कर सकता है और संभावित रूप से वित्तीय संकट को बढ़ा सकता है आखिरकार, लघु बिक्री को सावधानी के साथ संपर्क किया जाना चाहिए और इसमें शामिल जोखिमों की गहरी समझ के साथ-साथ एक ठोस निवेश योजना भी शामिल है जो अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों लक्ष्यों को ध्यान में रखती है
तो दोस्तों आपको यह आर्टिकल (short selling in hindi) कैसा लगा हमें कमेन्ट में जरुर कहे तो हमनें इस टोपिक में क्या – क्या सिखा, शोर्ट सेलिंग क्या होती है इसकी सामान्य व्याख्या क्या है यह समजा, किस प्रकार की बिकवाली ट्रेडिंग को ‘शोर्ट सेलिंग’ नहीं कहा जा सकता है, इस ट्रेडिंग को करतें समय हमें किन – किन बातोँ का ध्यान रखने की जरुरत होती है, शोर्ट सेलिंग की दो अलग – अलग ट्रेडिंग स्ट्रेटेजि, इनकें अलग – अलग प्रकारों के उदाहरण और आखिर में इसके कुछ फायदे और नुकसानीयों को देखा तो यह हमारा टोपिक यही समाप्त होता हैं, धन्यवाद