Derivatives Meaning In Hindi

Derivatives Meaning In Hindi

derivatives meaning in hindi

हेल्लो दोस्तों आज हम डेरिवेटिव मार्केट के दो अहम प्रकार Futures and Options को समजेंगे वैसे इन दोनों टोपिक पर मैंने पहलेसे आर्टिकल्स दिए हुए हैं मगर इस टोपिक में हम अधिक विस्तार से समजेंगे आमतौर पर स्टॉक मार्केट के बेस पर डेरिवेटिव मार्केट के 3 प्रकार (Forward Market, Futures Market and Options Market) होते हैं जिनमें सभी को वन बाय वन समजेंगे साथ ही डेरिवेटिव मार्केट को भी उदाहरण से समजेंगे और साथ ही फ्यूचर्स और ऑप्शन्स को उदाहरण के साथ दोनों के तुलनात्मक व्यूह से जानेंगे तो चलिए शुरू करते हैं (derivatives meaning in hindi)

Derivatives Market क्या होता हैं :-

डेरिवेटिव मार्केट को उदाहरण से समजे तो Gold (सोना) और कोयले को Mining (खुदाई) करके निकाला जाता है तो सोना और कोयला Excavated Land (खुदाई की गई भूमि) के डेरिवेटिव है वैसेही पेट्रोल और डीजल को क्रूड ऑइल से निकाला जाता है तो पेट्रोल और डीजल क्रूड ऑइल के डेरिवेटिव है यानि जो भी चीज किसी विशिष्ट प्लेटफार्म से प्राप्त की जाती है उसे डेरिवेटिव कहा जाता हैं

डेरिवेटिव मार्केट की अहम बातें

  • NSE में फ्यूचर्स एंड ऑप्शन्स में तकरीबन कुल 199 स्टॉक अवेलेबल हैं (F&O Stock List) जिनमे आप F&O Trading कर सकते हों साथ ही स्टॉक एक्सचेंज के द्वारा इस स्टॉक लिस्ट को Daily Base पर अपडेट किया जाता है जिसमे कुछ स्टॉक को ऐड किया जाता है और कुछ स्टॉक को निकाला जाता हैं
  • डेरिवेटिव मार्केट में कम पैसो में बड़ा ट्रेड कर सकते है जिसमे ज्यादा प्रॉफिट और ज्यादा लोस होने की संभावना होती हैं
  • स्पॉट प्राइस के आधार पर फ्यूचर की प्राइस तय होती है
  • डेरिवेटिव को सामान्य शब्दों में लिवरेज प्रोडक्ट है यानि आपकी जेब में केवल 20 रुपे है मगर आप जो सौदा कर रहे है वो 80 से 100 रुपे की वैल्यू का हैं
  • फ्यूचर मार्केट में हेजिंग, स्पेकुलेशन के लिए ट्रेडिंग का इस्तेमाल किया जाता है
  • फ्यूचर्स कारोबार में कैश मार्केट से कई ज्यादा रिस्क होता है
  • F&O Market में बिना डिलिवरी के भी शेयर को बेच सकते है
  • NSE में किसके आधार पर F&O में शेयरों को शामिल किया जाता हैं – प्रोमोटर शेयर होल्डिंग, ट्रेडिंग वॉल्यूम, कंपनी का स्टॉक शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध होने के बाद मार्केट में बना हुआ है
  • कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू यानि कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू = शेयर का प्राइस × लोट साइज़
  • Open Interest – इसका इस्तेमाल केवल डेरिवेटिव मार्केट में ही होता है कैश मार्केट में इसके कोई मायने नहीं होते है, उदाहरण के तौर पर किसी ट्रेडर ने 1 लोट ख़रीदा और सामने दुसरे ट्रेडर ने 1 लोट बेचा इन दोनों ट्रेडर्स ने इसको कही पर लिक्विडेट नहीं किया जिसका मतलब खरीदनेवाले ट्रेडर ने लॉन्ग पोजीशन बनाई वही बेचनेवाले ट्रेडर ने शोर्ट पोजीशन बनाई इसका यह मतलब नहीं बनता की 2 लोट ओपन इंटरेस्ट पर खड़े है इसको हम ऐसे समज सकते है की यह 1 लोट की पोजीशन किसी स्टॉक पर ओपन इंटरेस्ट के तौर पर खड़ी हैं

Cash और Derivative Market के बिच अंतर

आमतौर पर स्टॉक मार्केट में दो प्रकार के बाज़ार होते हैं एक तो कैश मार्केट जिसे हम BSE/NSE Cash Market के नाम से जानते है जहां पर हम सामान्य रूप से शेयरों को Buy और Sell करते हैं और दूसरा डेरिवेटिव मार्केट जिसमें जनरली फ्यूचर्स और ऑप्शन्स आते हैं

कैश मार्केट में हम जिस किसी स्टॉक को खरीद या बेच रहे है वह उस पर्टिकुलर दिन के लिए होता है वही डेरिवेटिव मार्केट में भविष्य की किसी तारीख के लिए वायदा या ऑप्शन को खरीद या बेच रहे है

इन दोनों मार्केट के बिच दूसरा और अहम अंतर यह है की कैश मार्केट में हम चाहे उतने शेयरों को खरीद और बेच सकते है यानि 1 स्टॉक, 2 स्टॉक्स, 10 स्टॉक्स हमारें मुताबिक हम शेयरों को Buy और Sell कर सकते है वही डेरिवेटिव मार्केट में Lots होते है पर्टिकुलर कंपनीयों के अलग – अलग लोट साइज़ होते है उसीके अनुरूप आपको ट्रेडिंग करना होता है

कैश मार्केट में लिस्टेड सभी कंपनीयों के स्टॉक पर ट्रेडिंग की जा सकती है मगर डेरिवेटिव मार्केट में वह सभी कंपनीयों के स्टॉक लिस्टेड नहीं है जो तकरीबन 145 कंपनीयां डेरिवेटिव मार्केट में सूचीबद्ध है तो आप केवल उन्ही स्टॉक्स में फ्यूचर्स और ऑप्शन्स ट्रेडिंग कर सकते हैं

डेरिवेटिव मार्केट यानि फ्यूचर्स और ऑप्शन्स का इस्तेमाल आमतौर पर हेजिंग यानि रिस्क को कम करने के लिए किया जाता हैं 

Derivative Market के प्रकार :-

वैसे तो डेरिवेटिव मार्केट के मुख्य तिन प्रकार होते है Forward Market, Futures Market और Options Market इन तीनो प्रकारों में जो पहला टाइप है वह स्टॉक मार्केट के आधीन नहीं होता है वह व्यापार कोईभी दो ट्रेडर्स मिलकर आपसमे कारोबार कर सकते है मगर बाकीके जो दो टाइप्स है वह स्टॉक मार्केट नियामक सेबी के कन्ट्रोल में होता है तो चलिए इन तीनो डेरिवेटिव के प्रकारों को पूर्ण विस्तार से उदाहरणों के साथ समजते हैं

Forward Market

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डेरिवेटिव बाज़ार के इस प्रकार को हम एक काल्पनिक उदाहरण से समजेंगे आजकी तारीख 20 अप्रैल है और आजकी Gold प्राइस Rs.52,500 10 ग्राम के लिए है मानलीजिये आप 10 ग्राम सोना खरीदना चाहते है मगर फिलहाल आपके पास यह राशी नहीं है आपके पास यह रकम 20 दिन के बाद यानि 10 मई को आएँगी

अब परेशानी यह है की पैसे तो 20 दिनों के बाद आयेंगे मगर आपको यह लगता है की Gold की प्राइस अगले 20 दिनों में औरभी बढ़ेगी, संभावना के तौरपर Gold की प्राइस Rs.54,500 से Rs.55,500 तक पहुच जाएँगी

जिसके लिए आप एक जौहरी के पास जाते हो और उसे बताते हो की मैरे पास 20 दिनों के बाद पैसे आनेवाले है जिनसे मुझे 20 दिनों के बाद यानि 10 मई को 20 अप्रैल की प्राइस पर सोना खरीदना है जिसकें लिए वह जौहरी मान जाता है क्योंकि उस जौहरी को लगता है की 20 दिनों के बाद Gold की प्राइस कम होनेवाली है यानि तकरीबन Rs.49,500 से Rs.50,500 तक प्राइस गिरनेवाली है

चलिए अब दोनों के संभावना के आधार पर दोनों के अपने – अपने पॉइंट ऑफ़ व्यू से फायदा होने के कारन यह कारोबार करने का फैसला किया हैं

अब 10 मई की तारीख आ गई जिस दिन आपके मुताबिक Gold की प्राइस Rs.54,500 तक आ चुकी है इसलिए आप तुरंत जौहरी के पास जायेंगे और Rs.52,500 के बदले 10 ग्राम सोना देने को कहोंगे मगर वह जौहरी अपने वादे से मुकर जाता है  

दूसरी कंडीशन को देखे तो उसी तारीख पर Gold की प्राइस Rs.50,500 तक आ चुकी होती है जिस कैश में आपको उस जौहरी से Rs.52,500 के बदले 10 ग्राम सोना खरीदना था मगर इस समय आप जौहरी की दुकान पर जाते ही नहीं है और अपने वादे से मुकर जाते हों तो यह फोरवर्ड मार्केट का Example हैं

फोरवर्ड मार्केट की परेशानियां

अब यह समजते है की फोरवर्ड मार्केट में कारोबार करते समय किन – किन परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है तो जैसे की हमनें इसके उदाहरण से समजा की आपने और जौहरी ने मिलकर भविष्य आधारित व्यापार करने की कोशिश की थी मगर यह डील पूरी नहीं हो पाई क्योंकि इस डील में कोई Middle Man नहीं था जिसकी वजह से यदि कोई अपने किये वादे से मुकर जाता है तो उसकी जवाबदेही कोई नहीं लेता है साथ ही ऐसे व्यापार में डिपोजिट भी नहीं भरी जाती है

वैसे फोरवर्ड मार्केट में इन जैसी और कई प्रोब्लेम्स है जिसमे पहले तो हमें एक प्रतिपक्ष को ढूंडना पड़ेंगा जैसे हमारे इस कैश में जौहरी था जो भविष्य के आधारित व्यापार करने को तैयार हों तो इन जैसी प्रोब्लेम्स को सोल्व किया है फ्यूचर मार्केट ने फोरवर्ड मार्केट के उपरोक्त सभी प्रोब्लेम्स को इसने बड़ी आसानी से सुलझा लीया हैं तो चलिए अब हम आगे इन्ही फ्यूचर्स मार्केट के बारेंमे ही समजने वाले हैं

Futures Market

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डेरिवेटिव मार्केट का यह प्रकार बेहद ही अहम है या यु कहे की फ्यूचर मार्केट से ही इसकी पहचान है तो इस टोपिक में हम फ्यूचर्स मार्केट को डीप में समजेंगे इनसे पहले हमनें फोरवर्ड मार्केट को एक उदाहरण के साथ समजा था जिसमे हमें कई परेशानीयां भी दिखी थी

तो उन्ही परेशानियों को हम फ्यूचर्स मार्केट के जरिये कैसे सोल्व कर सकते है यह समजेंगे साथ ही इसके उदाहरण को समजने से बेहतर हमें फोरवर्ड और फ्यूचर्स मार्केट के बिच रहे अंतर को समजना पड़ेंगा क्योंकि फोरवर्ड मार्केट के उदाहरण को हमनें विस्तार से समजा है जिसकें बेस पर ही फ्यूचर्स मार्केट चलता है और इनकी कुछ शब्दावली और अवधारणाएं भी समजेंगे तो चलिए इन सभी मुद्दों को वन बाय वन समजते हैं

फोरवर्ड और फ्यूचर्स मार्केट के बिच अंतर

तो दोस्तों जैसे की हमने आगे वायदा बाजार और फ्यूचर मार्केट को समझां अब इन दोनों अहम बाजारों के बिच हमें क्या – क्या समानताएं और डिफरेंट देखने को मिलता है वह विस्तारपूर्वक समझते हैं

Middle Man

फोरवर्ड और फ्यूचर्स मार्केट का सबसे बड़ा अंतर यह देखने को मिलता है की फोरवर्ड मार्केट में हमें किसी प्रकार का कोई Middle Man देखने को नहीं मिलता वही फ्यूचर्स मार्केट में Middle Man के तौर पर Stock Exchange होता हैं जिसमे ज्यादातर NSE (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) में फ्यूचर्स के स्टॉक्स ट्रेड होते है

Default Risk

फोरवर्ड और फ्यूचर्स मार्केट का दूसरा अंतर यह है की फोरवर्ड मार्केट में दो पार्टीयों के बिच भुगतान में चूक होने का हमेशा जोखिम बना रहता है लेकिन फ्यूचर्स मार्केट में ऐसा कभी नहीं होता है क्योंकि ट्रेडर्स की सुरक्षा हेतु SEBI ने स्टॉक एक्सचेंज को रखा होता हैं जो सभी ट्रेडर्स से Margin के तौर पर राशी जमा रखता है और वो यह सुनिश्चित रखता है की लोस से ज्यादा मार्जिन जमा हों

Finding Buyers and Sellers Manually

अब बात करते है अगले डिफरेंस की तो फोरवर्ड मार्केट में आपको खुद Buyer और Seller को ढूंडना पड़ता है मगर फ्यूचर्स मार्केट में यह कार्य एक्सचेंजों के द्वारा होता है इसमें आप किनसे फ्यूचर्स खरीदते हो या बेचते हो यह भी पता नहीं होता है सरल रास्ते पर आप अपने ऑर्डरों को प्लेस करते हो वहा पर आपको CMP पर Buyers और Sellers मिलते है और आपका सौदा पूरा होता है

Contract Can’t Be Canceled

अगले डिफरेंस यह है की फोरवर्ड मार्केट में कॉन्ट्रैक्ट रद्द नहीं कर सकते यदि ऐसा करना है तो आपको उस पार्टी को मनाना पड़ेंगा जो काफी मुश्किल है वही फ्यूचर्स मार्केट में बिना किसी पेनल्टी या चार्जिस के अपने कॉन्ट्रैक्ट को बड़ी आसानी से रद्द कर सकते हों जिसमे यदि आपने कोई फ्यूचर स्टॉक खरीद लिया है तो एक्सपायरी डेट से पहले उसे बेच सकते हों

Customization

इन दोनों के बिच अगला Main डिफरेंस यह है की फोरवर्ड मार्केट Customizable होते है यानि उन्हें हम हमारें मुताबिक किसी भी समय, कोई भी प्राइस पर चाहे उतनी Quantity में कारोबार कर सकते है मगर फ्यूचर्स मार्केट में ऐसा बिल्कुल नहीं होता क्योंकि उनकीं साइज़ और टाइम स्टॉक एक्सचेंज के द्वारा नक्की किया जाता हैं

Futures Contract

तो चलिए अब बात करते है फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट क्या है, उसकी बेसिक इनफार्मेशन क्या है और साथ ही उनकें कॉन्सेप्ट को डिटेल में समजेंगे फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट भी फोरवर्ड मार्केट की तरह भविष्य की किसे सुनिश्चित तिथि पर काम करते है जैसे आपको किसी कंपनी के फ्यूचर स्टॉक को भविष्य की तिथि पर खरीदना है तो आप आज ही उसकी प्राइस और बाकि डिटेल्स को नक्की कर सकते हों और यदि आप इस टोपिक को विस्तार से समजना चाहते हों तो हमारें अगले आर्टिकल में इसको उदाहरण के साथ समजाया गया हैं

Options Market

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डेरिवेटिव में जिस प्रकार फ्यूचर्स की अहमियत है ठीक उसी प्रकार ऑप्शन्स का भी बेहद अहम रोल हैं इनसे पहले हमने फोरवर्ड और फ्यूचर्स मार्केट को समजा था आज हम ऑप्शन्स मार्केट को डीप में समजने वाले है वैसे डेरिवेटिव का यह तीसरा और आखरी प्रकार है तो चलिए पहले हम इसको एक काल्पनिक उदाहरण से समजते हैं

ऑप्शन्स का उदाहरण 1  

इस ऑप्शन्स ट्रेड को रियल एस्टेट के एक Example से समजते है तो मानलेते है की एक व्यक्ति के पास 50 लाख रुपे है और वो उसका इस्तेमाल मुंबई में एक फ्लेट खरीदनें के लिए करना चाहता है मगर प्रोपर मुंबई में उसको इस कीमत पर फ्लेट नहीं मिलता जिसकें लिए वो सिटी से थोड़े बाहरी एरिया को तलाश करते है तभी उनकी नज़र में एक फ्लेट आता है जो उनकी कीमत पर अवेलेबल होता है मगर वह एरिया बहोत खाली मालूम पड़ता है

तभी उनको इनसे रिलेटेड एक न्यूज़ सुनाई देती है जहां पर इस एरिये के बिल्कुल बगल से एक नेशनल हाइवे निकलनेवाला है मगर उसमे एक साल जितना समय लग सकता है जिसकें लिए वह व्यक्ति जाता है उस बिल्डर के पास और उसके सामने एक प्रस्ताव रखता है

प्रस्ताव ऐसा होता है की वह व्यक्ति उस बिल्डर से कहता है की आपको यह फ्लेट 1 साल तक किसीको नहीं बेचना है जिसकें लिए मैं आपको 50 हजार दूंगा और यदि 1 साल में मैं यह फ्लेट नहीं खरीदता तो आप इस फ्लेट किसीको को बेच सकते है जिसके बाद वह टोकन अमाउंट आपकी होंगी तो इस प्रस्ताव को बिल्डर स्वीकार करता है

सिचुएशन

अब इस सिचुएशन में तो दो ही बातें होंगी एक तो वह व्यक्ति के मुताबिक 1 साल में वहापर नेशनल हाइवे आता है तो उस फ्लेट की कीमत अपनेआप बढ़ने लगेंगी जिसमे उस व्यक्ति का फायदा होंगा और यदि उनकें मुताबिक ऐसा नहीं होता है तो उसको एडवांस में दी हुए टोकन अमाउंट को छोड़ना पड़ेंगा जिसकें बाद वह व्यक्ति इस कॉन्ट्रैक्ट को छोड़ कर जा सकता है

तो ऑप्शन्स ट्रेडिंग भी बिल्कुल इसी प्रकार होती है अगर आप जैसा सोचते हो बिल्कुल वैसा ही होता है तो आपको प्रॉफिट मिलेंगा और यदि आप जैसा सोच रहे हों वैसा नहीं होता है तो आपको लोस होंगा जोकि एक टोकन अमाउंट होता है जिसे ऑप्शन मार्केट में Premium कहा जाता हैं

ऑप्शन्स का उदाहरण 2

ऑप्शन के इस दुसरे Example को हम बडें सामान्य शब्दों में समजेंगे तो जैसा की हम कई अलग – अलग चीजों के लिए इंश्योरेंस करवाते है जिसके लिए हमें इंश्योरेंस अमाउंट के तौर पर एक प्रीमियम भरना पड़ता है वह प्रिमियम आपको कभी वापिस नहीं मिलेंगा इस आधार पर आप प्रिमियम भरते हों

सिम्पली इंश्योरेंस प्रिमियम भरने का कारन आप जिस किसी चीज या व्यक्ति के लिए इंश्योरेंस चाहते हो उसके लिए भविष्य आधारित सुरक्षा के तौर पर प्रिमियम भरा जाता है यदि इंश्योरेंस की चीज सुरक्षित है तब आपका प्रिमियम आपका लोस होंगा 

यदि इंश्योरेंस की चीज को किसी प्रकार की कोई नुकसानी पहुचती है तब भी आपका प्रिमियम आपका लोस ही होंगा क्योंकि उस कैश में केवल आपकी नुकसानी की भरपाई की जाएँगी तो इस उदाहरण को भी ऑप्शन के तौर पर देखा जाता हैं

ऑप्शन्स के प्रकार

ऑप्शन्स के दो प्रकार होते है Call and Put Option, जबभी आपको लगता है की स्टॉक की प्राइस ऊपर जाएँगी तब आप Call Option को खरीदते हों और यदि आपको लगता है की किसी स्टॉक की प्राइस नीचें आएँगी तब आप Put Option को खरीदते हों, ऑप्शन्स के Buyers भी होते है और ऑप्शन्स के Sellers भी होते हैं वैसे हमनें इसको हमारे पुराने आर्टिकल में उदाहरण के साथ समजाया गया है तो यदि आप इसको कंटीन्यू करना चाहते है तो तुरंत उस आर्टिकल को समजे

निष्कर्ष :-

तो दोस्तों आपको यह आर्टिकल (derivatives meaning in hindi) कैसा लगा हमें कॉमेंट में जरुर कहे तो आखिरकार हमनें इस टोपिक में क्या – क्या सिखा पहले तो डेरिवेटिव मार्केट क्या होता है और उसकी अहम बातोँ को जाना और समजा, Cash और  Derivative Market के बिच के अंतर को समजा और आखिर में डेरिवेटिव मार्केट के तिन प्रकारों को समजा जिसमे फोरवर्ड मार्केट को उसके पूर्ण उदाहरण के साथ समजा साथ ही उसमे किन – किन प्रकारों की परेशानीयों को देखना पड़ता है उनको भी समजा हैं

फ्यूचर्स मार्केट में फोरवर्ड और फ्यूचर्स दोनों मार्केट के बिच के अंतर को और फोरवर्ड मार्केट की परेशानीयों को कैसे सोल्व किया जाता है यह समजा और ऑप्शन्स मार्केट में उनके दो अहम उदाहरणों को समजा और उनकें दो प्रकारों के बारेंमे चर्चा की तो यह हमारा आर्टिकल यही समाप्त होता हैं, धन्यवाद

डेरिवेटिव मार्केट क्या होता हैं ?

यदि डेरिवेटिव बाजार को एक काल्पनिक उदाहरण से समझा जाए तो खनन द्वारा सोना और कोयला निकाला जाता है, तो सोना और कोयला उत्खनित भूमि के डेरिवेटिव हैं

डेरिवेटिव ट्रेडिंग क्या है ?

आमतौर पर डेरिवेटिव का कारोबार डेरिवेटिव मार्केट में किया जाता है जहाँ पर भविष्य आधारित ट्रेडिंग को खास महत्त्व दिया जाता है इसके उदाहरण के तौरपर फ्यूचर्स और ऑप्शन्स मार्केट शामिल हैं

डेरिवेटिव मार्केट के मुख्य कितने और कौन – कौन से प्रकार हैं ?

डेरीवेटिव्स के मुख्य तिन प्रकार हैं जिनमें से सबसे आता है वायदा बाजार यानि Forward Market दुसरे और तीसरे स्थान पर फ्यूचर मार्केट (Future Market) और विकल्प बाजार (Option Market) आते हैं

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Hello friends, currently I am working in the stock market operating as well as blogging through this wonderful website.

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